वैसे हम जैसे-जैसे बड़े होते है हमे हमारी उन दिनों की बाते बहुत अच्छी लगती है क्योंकि जैसे हमे स्कूल जाना जेल जाने से कम नही लगता था, दूध का गिलास खत्म करना एक चुनौती सा लगता था,औऱ सही जोड़ें में जूता पहनना तो नामुमकिन था,टिफ़िन शेयर करने से दोस्ती पक्की होती थी,कट्टी बट्टी से तो हमारी दुनिया कायम थी,और तो और हम रो धो कर अपनी बातें मनवा लिया करते थे,खिलौनों के लिए आसमान सर पर उठा लिया करते थे,भाई-बहनों को चिढाना रिस्तो का सच्चापन था,उन दिनो की सब से न्यारी और प्यारी चीज माँ के आंचल में पूरी दुनिया समाती थी,दर्द सिर्फ चोट लगने पर हुआ करता था...ये तो हुई बस बचपन की कुछ उन दिनों की बाते...पर ये बचपन की बाते सब को बहुत याद आते है...क्योकि ये उन दिनों की बाते बस से मीठी और सच्ची हुआ करती है...
वक़्त हमे बहुत कुछ सीखाता है...बल्कि मुझे तो लगता है कि वक़्त को इसलिए बनाया गया है कि हमे सीखा सके..और जैसे-जैसे वक़्त जाता है यादे जाती है कुछ कट्टी तो कुछ मीठी..यही यादे हमारे "ये उन दिनों की बात है" बन जाती है...
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