ज़िन्दगी एक बगीचे के फूल जैसा है जिसे वक़्त पर हवा, पानी और धूप न मिलने से मुर्झा जाती है...पर मरती नही है क्योकि मरना तो इस ज़िन्दगी के हाथ मे भी नही है...वो इसलिए क्योंकि इस ज़िन्दगी को जीना एक लक्ष्य है और इस लक्ष्य को पूरा करना जिन्दगी है...हां वो अलग बात है कि हम कभी-कभी वक़्त के तेज़ तूफान से, तो कभी हालातो से, तो कभी खुद के टूट जाने से, तो कभी चोट लगने से मुर्झा जाते है क्योंकि उस वक़्त न तो हवा होता है,न पानी और न ही धूप...इस हवा, पानी धूप की भी कोई गलती नही है क्योंकि इससे दूर भी हम खुद ही होते है...अब आप पूछेंगे की भला वो कैसे वो ऐसे कि हमे पता होता है कि तेज़ तूफान है वक़्त पर धीमी हो जाएगी फिर भी उस तूफान से डर जाते है,अपने हौसले को मार देते है अपने लक्ष्य को भूल जाते है...अब आप ही बताओ कि लक्ष्य क्या है ज़िन्दगी और ज़िन्दगी को ही भूल जाएंगे तो कहा से जीने की इच्छा रहेगी...
अब आप सोच रहे होंगे कि मैं आज ये सब बाते क्यो कर रही हूं...वो क्या है ना कि मैं बहुत हैरान है यू ही कोई अपनी ज़िंदगी कैसे ले सकता है और अपनी ज़िंदगी को कैसे खत्म कर सकता है...क्या उन सभी को समझ नही है कि ज़िन्दगी अनमोल है जिसे एक माँ बड़े दुःख तकलीफों के साथ इस दुनिया मे लाती है...उन सभी को शायद ये नही पता कि अपनी ज़िंदगी को खत्म कर अपनी माँ का अपमान कर रहे है और माँ एक ऐसी प्राकृति है जो उस प्राकृति से जुड़ी है जिसे सारा जहां सर झुकाती है...एक दिन आप को वही जाना है जिसका आप अपमान कर के वहाँ गए हो सोचो कि उन पर क्या बीतेगी...
इस दुनिया मे सभी इंसान को अपना अपना रास्ता मिला है जिसे तय करना है...और उस रास्ते पर जान भुझ कर मुश्किले दी जाती है...उससे जितना खुशी का एहसास और वो एहसास जीने की वजह, वजह लक्ष्य और लक्ष्य तो आप जानते ही है ज़िन्दगी...
आप को जान कर हैरानी होगी कि एक साल में 8,00,000 से 10,00,000 लोग आत्महत्या करते है...
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