जैसे-जैसे वक़्त बिता वैसे-वैसे आवारगी का मतलब बदला ...जी हां ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि आप किसी से भी जा कर पूछेंगे कि आवारगी या आवारा का क्या मतलब होता है, सब यही जवाब देंगे कि जो निकम्मा हो और इधर-उधर घूम कर समय बर्बाद करता हो...मैं भी यही माना करती थी कि जो इधर-उधर घूमता हो, निकम्मा हो लेकिन कुछ यू हुआ कि अब मन करता है कि आवारगी करू...अब आप सोच रहे होगे की ऐसा क्या हुआ कि मुुझे आवारगी करनी हैं...क्या है ना कि एक दिन मैं जावेेेद अख्तर का शो देख रही थी जिसमे वो "मैंं और मेरी आवारगी" कविता की व्यख्या कर रहे होते है जिसमे वो कहते है कि आवारा वो नही जो निकम्मा हो आवारा तो वो होते है जो अपनी मंजिल की तलाश में अपना घर, अपना परिवार, अपना साधारण जिन्दगी छोड़ इस नगर और उस नगर अपनी मंजिल की तलाश में निकलता हैं...उस मंजिल की तलाश में सिर्फ वो होता है और उसकी आवारगी होती है...जहां ना आशना होता है और ना ही मेहरवान किसी की नज़र होती होती है...आप ही सोचिए कितना प्यार अर्थ है फिर क्यों नहीं मन करेगा आवारगी करने का...अरे आप गलत मत समझिएगा मैं उस निकम्मा आवारगी की बात नही कर रही हूं...
पता नही लोग निकम्मा आवारगी क्यो करते है...इसी निकम्मे आवारगी की वजह से कुछ गलत करते है या किसी से गलत करवाते है...अगर आप को आवारगी करनी है तो अपनी मंजिल के तलाश के लिए आवारगी कीजिए...
वैसे "मैं और मेरी आवारगी" कविता जो जावेद अख्तर सर् ने लिखा है जिस पर आर.डी. बर्मन ने दुनिया मूवी(1984) में म्यूजिक दिया है और परफॉर्म किशोर कुमार ने किया है...
इस कविता को मै नीचे लिख रही हूं...उम्मीद करती हूं कि जितना मुझे पसंद आया उतना आप को भी पसंद आए...
"मैं और मेरी आवारगी"👇
फिरते हैं कब से दरबदर
अब इस नगर, अब उस नगर
एक दूसरे के हमसफ़र
मैं और मेरी आवारगी
ना आशना हर रहगुज़र
ना मेहरबाँ सबकी नज़र
जायें तो अब जायें किधर
मैं और मेरी आवारगी
इक दिन मिली एक महजबीं
तन भी हसीं, जां भी हसीं
दिल ने कहा हमसे वहीँ
ख़्वाबों की है मंजिल यहीं
फिर यूँ हुआ वो खो गयी
तू मुझको जिद सी हो गयी
लाएँगे उसको ढूँढकर
मैं और मेरी आवारगी...
ये दिल ही था जो सह गया
जो बात ऐसी कह गया
कहने को फिर क्या रह गया
अश्कों का दरिया बह गया
जब कहके वो दिलबर गया
तेरे लिये मैं मर गया
रोते हैं उसको रात भर
मैं और मेरी आवारगी...
हम भी कभी आबाद थे
ऐसे कहाँ बरबाद थे
बेफिक्र थे, आज़ाद थे
मसरूर थे, दिलशाद थे
वो चाल ऐसी चल गया
हम बुझ गये दिल जल गया
निकले जला के अपना घर
एक दूसरे के हमसफ़र
मैं और मेरी आवारगी
ना आशना हर रहगुज़र
ना मेहरबाँ सबकी नज़र
जायें तो अब जायें किधर
मैं और मेरी आवारगी
इक दिन मिली एक महजबीं
तन भी हसीं, जां भी हसीं
दिल ने कहा हमसे वहीँ
ख़्वाबों की है मंजिल यहीं
फिर यूँ हुआ वो खो गयी
तू मुझको जिद सी हो गयी
लाएँगे उसको ढूँढकर
मैं और मेरी आवारगी...
ये दिल ही था जो सह गया
जो बात ऐसी कह गया
कहने को फिर क्या रह गया
अश्कों का दरिया बह गया
जब कहके वो दिलबर गया
तेरे लिये मैं मर गया
रोते हैं उसको रात भर
मैं और मेरी आवारगी...
हम भी कभी आबाद थे
ऐसे कहाँ बरबाद थे
बेफिक्र थे, आज़ाद थे
मसरूर थे, दिलशाद थे
वो चाल ऐसी चल गया
हम बुझ गये दिल जल गया
निकले जला के अपना घर
मैं और मेरी आवारगी...
धन्येवाद,
यदि मेरा ब्लॉग पसंद आया तो follow my Blog और अपने दोस्तों के साथ भी शेयर किजिए...
No comments:
Post a Comment
friends leave a comment beacuse your comment encourage me...