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Sunday, 6 May 2018

विद्रोह















"विद्रोह" कितना भाड़ी भड़कम शब्द लगता है ये शब्द भाड़ी भड़कम शब्द इसलिए है क्योंकि विद्रोह करना इतना आसान नही होता है...विद्रोह करने के लिए हिम्मत और जज्वा की बहुत जरूरत होती है...ये हिम्मत और जज्वा जुटाने में कितना खुद से लड़ना पड़ता है वो शायद आप लोग जानते होंगे...क्योंकि कभी न कभी आप खुद के लिए, अपनो के लिए या इंसानियत के लिए जरूर विद्रोह किए होंगे...और अगर नही भी किए होंगे तो ये जिंदगी ऐसी है कि आज ना कल आप को किसी ना किसी से खुद के लिए या अपनो के लिए या इंसानियत के लिए विद्रोह जरूर करेंगे...
विद्रोह हमारी ज़िंदगी का एक ऐसा हिस्सा है जिसके बिना हम अधूरे है ऐसा इस लिए क्योकि जिस समाज मे हम रहते है उस समाज मे बंदिशे बहुत है जिसके लिए हमको लड़ना पड़ता है, आवाज उठाना पड़ता है, विद्रोह करना पड़ता है और ये जरूरी है खुद के लिए...
मेरे नज़रिए में इस समाज मे जितनी बंदिशे नारियो पर है उतना किसी पर नही है क्या पता मैं आप के नज़रिए से गलत भी होंगी क्योकि सब का नज़रिया अलग-अलग होता है...मेरा नज़रिया ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं ऐसा सोचती हूं कि जितना नारी पर गहने होते है उतना ही उन पर बंदिशे होती है...हमारे पूर्वजो ने गहनों के जरिए नारियो को बांध दिया है...और इस बंदिशो को हटाना बहुत मुश्किल है...मेरा ऐसा मानना है कि इसी बंदिशो के कारण महिलाएं विद्रोह नही कर पाती है अपने हक के लिए, उनके साथ हो रहे जुल्म के लिए...
ना जाने रोज़ कितनी महिलाओ के साथ जाने किस-किस तरह का जुल्म होता है...कोई घरेलू हिंसा का शिकार होती है तो कही किसी महिला या लड़कियों या बच्चियों के साथ रैप होता है,कही किसी लड़की का जबरन शादी न जाने क्या क्या होता है..और कही न कही ये महिलाएं समाज मे इज्जत ओर बदनामी के डर से विद्रोह नही कर पाती है और अपनी इसी ज़िन्दगी को स्वीकार कर पूरी ज़िंदगी जुल्म के साथ जीती है...बहुत जरूरी है जागरूकता फैलाने की अपने हक के लिए विद्रोह करना कितना जरूरी है...
मैन छोटी सी कोशिश की है एक शार्ट मूवी विद्रोह के जरिए...इसमे ये बताने का प्रयास किया है कि एक माँ ने समाज मे बदनामी के डर से बेटी की तकलीफों के बारे में न पूछ ये पूछती है कि "तुमने ये बात किसी को बताई तो नही है"... ये सवाल ही एक चुप्पी को बयां करती है...इसी चुप्पी के कारण अपराधी निडरता से अपराध करते है...और इसी कारण महिलाएं होश संभालने से लेकर अंतिम सांस तक डर के साथ जीती है...दुख की बात तो ये है कि हम इस डर के साथ समझौता कर चुके है...समझ नही आता हम किससे डर रहे है और क्यो डर रहे है "अपराधी वो है हम नही"...तो जरूरत है आवाज़ उठाने का, विद्रोह करने का समाज मे बदनामी के लिए नही बल्कि इज्जत के लिए..


विद्रोह से नही डरेगी नारी क्योकि समाज की इज्जत मानी जाती है नारी...
एक बार इस शार्ट मूवी विद्रोह को जरूर देखिए...

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